Harnoor tv Delhi news : भारत कई प्रकार के पेड़-पौधों और जड़ी-बूटियों का घर है, जो न केवल आयुर्वेद में महत्वपूर्ण हैं, बल्कि धार्मिक आचार-विचार में भी महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इन्हीं पौधों में से एक है तैमुर, जिसे 'पहाड़ी नीम' भी कहा जाता है। यह विशेष रूप से चमोली सहित उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में पाया जाता है। इस पौधे की सिर्फ पत्तियां ही नहीं बल्कि शाखाएं, बीज और फल भी फायदेमंद होते हैं। यही कारण है कि ग्रामीण सदियों से इसका उपयोग करते आ रहे हैं।
चमोली जिले के कर्णप्रयाग महाविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर वीपी भट्ट का कहना है कि तिमूर पौधे का वानस्पतिक नाम जेन्थोक्सिलम आर्मेटम है। इसके कई औषधीय गुणों के कारण इसका उपयोग छोटी-बड़ी बीमारियों में किया जाता है। प्रो भट्ट ने लोकल 18 को बताया कि इसका उपयोग औषधीय रूप से दांतों को मजबूत करने और रक्तचाप और शुगर की समस्याओं के इलाज के लिए किया जाता है।
तिमुर धार्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण है।
रुद्रप्रयाग जिले के एक आयुर्वेदिक अस्पताल में तैनात फार्मासिस्ट और स्थानीय विशेषज्ञ एसएस राणा का कहना है कि तिमूर का औषधीय गुणों के साथ-साथ धार्मिक महत्व भी है। मान्यता है कि इसे घर की दहलीज पर रखने से नकारात्मक शक्तियों का असर नहीं होता है। घर को बुरी नजर नहीं लगती। जनेऊ संस्कार के समय बटुकों के हाथ में यह तैमूर छड़ी दी जाती है। साथ ही इसकी लकड़ी बहुत पवित्र मानी जाती है, इसलिए साधु-संतों के पास भी तिमूर की लकड़ी देखी जाती है।