70 करोड़ की सीरीज में गिनाने लायक सात बातें भी नहीं, सोनी लिव का अभिशाप बनी सीरीज
बिना इस लोक में अपना नाम बनाने वाले चंद फिल्मकारों में नील माधव पांडा का नाम शुमार है। सामाजिक हलचल उनका प्रिय विषय है।
13 साल हो चुके हैं। फिर शौच समस्या पर उनकी एक फिल्म आई ‘हल्का’ कोई पांच साल पहले। बीच में वह ‘कौन कितने पानी में’ और ‘कड़वी हवा’ भी बना चुके हैं
पर्यावरण में साजिश की कहानी दिखे तो उसकी दिलचस्पी तो जागेगी ही। जाहिर है कि ऐसे किसी विषय को बातचीत में ही बेच देना किसी भी फिल्मकार के लिए बाएं हाथ का खेल है।
नील को सोनी लिव से कोई 70 करोड़ रुपये मिले हैं, ये चर्चा अली अब्बास जफर की फिल्म ‘ब्लडी डैडी’ का बजट 170 करोड़ रुपये होने जैसी हवा हवाई भी हो सकती है
लगनी शुरू हो चुकी दीमक की शुरुआत भी हो सकती है। औसतन 45 मिनट के हर एपिसोड की सात एपिसोड वाली ये सीरीज उत्सुकता जगाती है लेकिन सीरीज देखना शुरू करते ही ये सारा जोश पहले एपिसोड के आखिर तक आते आते सुस्त पड़ने लगता है।
लेकिन, किसी भी कहानी को रुचिकर तरीके से कहने के लिए एक थ्रिलर में जो बातें जरूरी होती हैं, वे वेब सीरीज ‘द जेंगाबुरु कर्स’ में मिसिंग हैं। नक्सल प्रभावित एक इलाके में एक पर्यावरणविद के मारे जाने की खबर उसकी लंदन में काम कर रही बेटी को मिलती है।
उसके पिता के दोस्त बेटी की मदद के लिए आगे आते हैं। दोनों मिलकर खोजबीन शुरू करते हैं तो बताया जाता है कि उसका नक्सलियों के नेता ने अपहरण कर लिया है। कहानी के बीच में एक चिकित्सक है जो सपत्नीक नक्सलियों के सेवा में लगा हुआ है।